निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें
ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा। ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा।
क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार
आज बहुत तड़प रहा हूं उसे दोबारा मिलने को लेकिन वह इतनी दूर चली गई के अब बस, उसकी याद आज बहुत तड़प रहा हूं उसे दोबारा मिलने को लेकिन वह इतनी दूर चली गई के अब बस, ...
यह देखकर फूल को गर्व हुआ इधर उधर देखने लगा कुरूप जड़ को देख कर दिल जड़ का वेदने लग यह देखकर फूल को गर्व हुआ इधर उधर देखने लगा कुरूप जड़ को देख कर दिल जड़ क...
दो सिक्कों के लिए उसको गिरवीं रखते देखा है। दो सिक्कों के लिए उसको गिरवीं रखते देखा है।